राजस्थान में एक प्रथा घुड़ला पर्व की – इतिहासिक सच्च – Victory of good over evil
राजस्थान मे गणगौर का क्या महत्व है ? लडकियाँ जो घुडला (earthen pot with holes) लेकर घुमती हैं । घुडले मे बहुत सारे छेद होते है, उसके पिछे भी कोई कहानी है क्या ?
राजस्थान में एक प्रथा है “घुड़ला” की । होली के बाद घुड़ला पर्व शुरू होता है, जिसके के बारे में पुराने लोग तो थोड़ा इतिहास जानते हैं, लेकिन आजकल की पीढ़ी जानती नहीं है कि घुडला त्यौहार क्या है ? क्यों मनाया जाता है ? खासतौर से जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है
राजस्थान में होली के बाद, गणगौर के दिनों में शाम को गली-मोहल्लों में घुड़ला घुमाने की प्रथा है। जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में नृत्य करती हुई घूमती है और घर-घर घुड़लो जैसा गीत गाती है । जो महिलाएं गवर पूजती है वह शाम के वक्त मिट्टी के बर्तन में दीपक जलाकर गीत गाती हुई चलती है। इस बर्तन में काफी सारे छेद होते है।
अब यह घुड़ला क्या है ? कोई नहीं जानता है, लेकिन घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी । सुनिए…
ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा । उन दिनों की बात हे कि उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी, जिनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है । गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थी ।
दरअसल हुआ ये था की “घुड़ला खान” अकबर का मुग़ल सरदार था; वह अत्याचार और पैशाचिकता का एक गंदा पिशाच था । उधर से ही घुडला खान अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था, उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी । उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया, जिसका गाँव वालों ने विरोध किया ।
इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह जी राठौड़ को दी । राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया। घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था ।
उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, “राव तुम मुझे नही, दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है ?”
राव सातल सिंह बोले , “पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ ।“
राजपुतो की तलवारों और बाणों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया, संख्या मे अधिक मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये, भागती मुग़ल सेना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया । राव सातल सिंह ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया । सभी बच्चियों को मुक्त करवा उनके सतीत्व की रक्षा करी । इस युद्ध मे वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये । उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ मौजूद सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता ओर त्याग की गाथा सुना रही है ।
कोसाणा के गांव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुडला खान का सिर सोंप दिया । बच्चियो ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी । यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी ।
राव सातल सिंह जी ने घुडला खान जैसे क्रूर और नरपिशाच का वध किया था । जिसे हमारे पूर्वज एक “उत्सवनुमा त्यौहार” की तरह मनाते हैं । Victory of good over evil. लेकिन लोग राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये । इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो ।
4 thoughts on “A tradition in Rajasthan – Ghudla parv”
VERY INFORMATIVE . WE SHOULD SHARE WITH ALL THE PEOPLE IN RAJASTHAN
Thanks for appreciation.
Nice information mehta uncle..I heard first tym
Thanks.. Akshita.. or Akshhtha